Saturday, September 15, 2007

खुले आसमान के नीचे ......

सितम्बर का महीना शुरू हो गया है पर अभी तक ठंड पड़ने का नाम ही नहीं ले रही है.रात को हल्की सी ठंड़ हो जाती है पर गर्मी अभी भी अलगनी पर टंकी हुई है। कल जब मैं घर की ओर लौट रही थी तो टप से दो-चार बूँद शीशे पर गिरी और फ़िर तेज़ बौछार ने सब कुछ तर कर दिया। पीछे मुड़ कर देखा तो कुछ दूरी पर सब कुछ सूखा था। ऐसा लगा जैसे बदली का टुकड़ा बादलों की टोली से भटक गया है, उसका पर रस्ता भूलना बहुत अच्छा लगा। उसके जाने के बाद मौसम सुहावना हो गया है।
हमारे घर के पास एक फ़ार्म है जिसे पिछली कई पीढियों से एक परिवार चलाता है। गर्मियों में इन को सुबह पौ फटने से पहले खेतों में काम करते देखा है। जून, जुलाई तक खेत लहलहा उठते हैं। यहाँ की सरकार ने इसे "preserved farmland" घोषित किया हुआ है जिसकी वजह से ये खेती के लिए ही इस्तेमाल किया जाएगा। सरकार की ओर से फ़ार्म को आर्थिक सहायता मिलती है उसे फ़ार्म ही बनाये रखने के लिए। न्यू जर्सी को 'गार्डन स्टेट' कहा जाता है , यहां खेत-खलिहान काफ़ी हैं पर बढ़ती हुई आबादी और विकास कि वजह से खेत धीरे-धीरे गायब हो रहे हैं। state और county का प्रयत्न है कि खेतों और खुली जगह को बचा सकें। इस के कारण प्राकृतिक सुन्दरता रहती है और पानी का संरक्षण होता है । कुछ आर्थिक कारण भी हैं।
इस फ़ार्म में मक्के और फली की खेती होती है, इसके अलावा थोड़े हिस्से में फल और सब्ज़ियाँ भी लगाई जाती हैं। फलों में peach, plum, strawberry, blackberry, rasberry, blueberry और सब्ज़ी में आलू, करेला, खीरा, टमाटर, चौले की फली, फ़्रांस बीन्स और स्ट्रिन्ग बीन्स,बैंगन बैंगनी और सफ़ेद रंग के, छोटे, मोटे ,लम्बे,सब आकार के मिल जाते हैं, हरी मिर्च, लाल मिर्च, पीली मिर्च, मीठी से तीखी तक मिलती हैं। यहां की सब से अच्छी बात है कि आप स्वयं वहाँ जा कर, चुन कर, ताजा सब्जी और फ़ल ला सकते हैं । यदि आप पसीने से तर-बितर न होना चाहे और मच्छरों से बचना चाहें तो वहां पर पहले से तोड़ी हुई सब्जी या फ़ल खरीद सकते हैं । हाँ ! उसके दाम थोड़े ज़्यादा देने पड़ेंगे।
कैथी, खेत की मालकिन हैं, करीब ७० साल की उम्र होगी । देखने से ही लगता है कि वह फ़ार्म पर काम अपनें आत्म संतोष के लिये कर रही है , कोई आर्थिक कारण तो है नहीं क्यों कि फ़ार्म की कीमत ही इतनी होगी कि वह आराम से 'रिटायर' हो सकती हैं । कैथी का फ़ार्म की हर एक सब्जी और फ़ल के प्रति प्यार झलकता है । अनूप दो-चार दिन पहले ढेर सारे मक्के लेने गए थे , कैथी नें अनूप को जब इतने सारे मक्के खरीदते देखा तो स्नेह से पूछा कि इतने सारे मक्को का क्या करोगे? अनूप ने बताया कि हम अगले दिन सुबह एक ग्रुप पिकनिक पर जा रहे हैं, उसके लिये चाहिये। तब उन्होनें अनूप से पूछा कि रात को मक्के रखोगे कहाँ ? अनूप नें जब बताया कि ऐसे ही बाहर रख देंगे तब उन्होनें समझाया कि मक्का को बाहर रखने से अगले दिन ताजा नहीं रहेंगे । उन्होंने अनूप को बताया कि उसके छिलके उतार कर, केवल एक छिलके की परत छोड़ कर फ़्रिज में रख दें तो अगले दिन बिल्कुल ताजा मिलेंगे । ऐसा लगा जैसे मक्के का अगले दिन तक ताजा रहना उन के स्वाभिमान और फ़ार्म की प्रतिष्टा से जुड़ा हो । जब भी आप जाएँ तो आपका मुस्कराहट से स्वागत होता है। आप ने जो भी सब्जी ली बस उन्हे बता दें , पैसे उसी हिसाब से लिये जायेंगे । आप के थैले में सब्जी को कोई गिनेगा नहीं । एक सीधा, सरल सा विश्वास है जो चला आ रहा है । कई पीढियों से यह फ़ार्म चला रहे हैं और नये Builders द्वारा फ़ार्म की बड़ी कीमत दिये जाने वाले प्रलोभनो से अपने को बचाये हैं । आस पास कई मकानों के नये developments आ गये हैं लेकिन यह फ़ार्म अभी भी १९१५ से वैसा का वैसा ही है । फ़ार्म चलाने का उद्देष्य ज़रूरत से ज़्यादा, इन का खेती से लगाव है। आर्थिक दृष्टी से ये सम्पन्न हैं और इन्हें कड़ी मेहनत करने की कोई आवश्यकता नहीं है ।
गर्मी के मौसम में टमाटर वहीं से लाती हूँ। जो स्वाद मौसम की सब्ज़ी का होता है वो बिन मौसम के फल और सब्ज़ी का नहीं होता जो 'सुपर मार्केट' मे मिलती है । 'सुपर मार्केट' में हर सब्जी देखनें में तो बहुत सुन्दर लगती है लेकिन पता नहीं कितनें दिन पहले की तोड़ी गई है और फ़िर न जानें उस पर कितनें 'केमिकल्स' का छिड़काव हुआ है । खेत से ताजा सब्जी तोड़ने का अपना ही आनन्द है, इस बहाने थोड़ी कसरत भी हो जाती है (जो इस देश में बड़ी मुश्किल से और प्रयास करने पर ही हो पाती है) ।
अब टमाटर का मौसम जाने वाला है। बारिश होने के बाद जो टमाटर पौधों पर लदे हुए थे, आज सब ज़मीन पर बिखरे पड़े थे। मन कर रहा था सभी उठा कर ले आऊँ। वहाँ से जब भी गुज़रती हूँ, हमारे शहर का सबसे सुँदर हिस्सा वो ही लगता है। यहाँ खुले आसमान के नीचे दूर-दूर तक धरती ही धरती दिखाई देती है। प्रत्येक मौसम का रँग अलग होता है। सर्दी में धरती बर्फ़ से ढकी सफ़ेद चादर में लिपटी रहती है। गर्मी में खेत की हरियाली धरती की तपस हर लेती है और पतझड़ में आसमान धरती का रँग चुरा लेता है, धरती पर जहाँ फ़सल पीली और भूरी होनी शुरू हो जाती है वहीं साँझ आसमान का रँग गुलाबी, सागर सा गहरा नीला, बैंगनी और इन्द्रधनुषी हो जाता है।
ये हमारे छोटे से शहर के छोटे से फ़ार्म का परिचय है। कभी आप हमारे घर आयेंगे तो आप को फ़ार्म की सैर ज़रूर करवायेंगे ।
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चित्र - अनूप भार्गव
लेखन - रजनी भार्गव , अनूप भार्गव

Wednesday, September 5, 2007

डाक, डाक, डाक



बैठे-बैठे घड़ी की ओर देखा तो दुपहर के तीन बज रहे थे, डाक आने का समय हो गया था. सोचा जा कर एक बार देख लूँ, शायद आ गई होगी। ऐसा नहीं कि कोई चिट्ठी आई होगी किसी परिचित जन की, किसी निकटतम मित्र या संबंधी की। मेल में कागज़ों का जो पुलिंदा आता है उसमें अधिकांश पत्रिकाएँ, स्टोर्स के कैटालौग, विभिन्न स्टोर्स के सेल के फ़्लायर्स और क्रैडिट कार्ड के बिल्स होते हैं। आज लेबर डे है तो उसके उपलक्ष में अधिकांश स्टोर्स में सेल लगी हुई है। तीन-चार दिन पहले ही उसके फ़्लायर्स आ गए थे। पूरी पत्रिका ही होती है जो यहाँ की सफ़ल मार्किटिंग का द्योतक है। रंगों से भरी, हर चीज़ आकर्षित लगती है, लगता है सबकी ज़रूरत है और बाद में इस दाम पर फिर मिले या न मिले। जैसे डाक भी मायूस हो खुशी का इंतज़ार करती रहती है, कभी-कभी शादी या जन्मदिन के निमंत्रण पत्र भी मेल में आ जाते हैं। गनीमत है राखी अभी भी मेल से आ जाती है, दिल्ली में सबको डाँट डपट कर रखा हुआ है कि ई-राखी मत भेजना, जब तक कलाई पर धागा नहीं हो बाँधने को, तो राखी कैसी ?

समय व्यतीत करने के लिए यदि आपको कोई और साधन नहीं मिले तो आप मेल ले कर बैठ जाईये और समय यूँ ही निकल जाएगा। ये तो ठीक है कि समय निकल जाता है पर समस्या तब होती है जब कुछ पन्नों का अंबार लग जाता है। जैसे प्रत्यक्षा के घर में किताबें धीरे-धीरे अपने लिये जगह खोजती हैं वैसे ही हमारे यहाँ कागज़ के पुलिंदे हैं। यदि आपने छंटाई नही की तो कमरे के हर कोने में अपनी जगह बनाते नज़र आते हैं। बहुत बार तो ऐसा भी हुआ है कि कार्पेट कम और कागज़ ज़्यादा दिखाई देते हैं। इन सब के बावजूद यदि हमें कविता लिखने के लिए खाली पन्ना नहीं मिला तो जंक मेल में लिफ़ाफ़े का पीछे का सपाट सफ़ेद हिस्सा बहुत काम आता है। हमारा कुत्ता विंसटन भी कागज़ के चीथड़े कर के हमारी सफ़ाई में अपना योगदान देता है। किसी और देश में देखी है आपने कागज़ की ऐसी खपत ?

जब हम इस घर में आए तब हमारा परिचय हुआ हमारे डाकिए से जिसका नाम चार्ली है, पैंसठ वर्ष के करीब आयु होगी,बाल और दाढ़ी दोनो सफ़ेद हो चुकी हैं। जब से हम आए हैं तब से इसे ही देख रहे हैं। हमारे परिवार में सब को जानता हैं ।पोस्ट आफ़िस की ओर से जीप मिली हुई है। डाक डालने के लिये दरवाज़ा खटखटाने की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि हमारा मेल बाक्स सड़क के किनारे हमारे घर के आगे लगा हुआ है। यदि मेल हमारे सुंदर,सुदृढ़ मेल बाक्स में नही आती है या फिर बर्फ़ इतनी गिरी हो कि उसका हाथ वहाँ तक नहीं पहुँचे तो उसे दरवाज़ा खटखटाना पड़ता है" दरवाज़ा खुलते ही पूछ लेते हैं कि सब कैसे हैं, हमारे बेटे के साथ विडीयो गेम्स की भी अदला-बदली करते थे । इनका बेटा भी हमारे बेटे के बराबर ही है। क्रिसमस के समय इन्हे सब पड़ोसियों से गिफ़्ट मिलती है। कोई किसी दिन और डाकिया आए तो चार्ली चर्चा का विषय बन जाते हैं कि कहीं वो रिटायर तो नहीं हो गए या फिर तबीयत ठीक नहीं लगती है। चार्ली और मेल अब एक दुसरे के पूरक हैं।

ऐसे ही हमारा मेल बाक्स भी घर का अभिन्न हिस्सा है। इसके आस पास फूल लगाए जाते हैं, पेन्ट भी किया जाता है, सुन्दर बेलों को भी चढ़ाया जाता है। अच्छा ध्यान आया, हमारा मेल बाक्स एक तरफ़ से थोड़ा सा ढ़ह रहा है, लगता है मेल ज़्यादा आ रही है। जा कर मेल देख आनी चाहिए, मालूम है नानाजी से वो दस पैसे वाला पीला पोस्टकार्ड तो नही आएगा जिस पर कभी-कभी दो लाईन लिखी होती थी :

प्रिय दुहिती रजनी,
तेरी चिट्ठी मिली। हम सब यहाँ सकुशल हैं।ये जानकर प्रसन्नता हुई कि वहाँ सब सकुशल हैं। चिट्ठी जल्दी लिखना, तसल्ली रहती है। सदा सुखी रहो, पत्र के इंतज़ार में,
नाना जी