Saturday, October 13, 2007

NELSONS CORNER

दीवार पर नन्हे-नन्हे हाथों ने चित्रकारी करी हुई थी, य़ूँ ही शरारत नहीं की थी पर इन्हे चित्रकारी करने के लिये टाऊनशिप की ओर से लिपी-पुती सफ़ेद दीवार मिली थी। दरअसल यहाँ छोटा सा एक स्ट्रिप माल है, उसे नया बनाने का काम कर रहे थे। जो दुकाने बन रही थी उसके निर्माण कार्य को छुपाने के लिये उस के आगे एक दीवार बनाई थी। दीवार को खूबसूरत बनाने के लिए बच्चों की चित्रकारी की ज़रूरत थी। उससे खूबसूरत और क्या हो सकता है, अब देखिये न, तीन चार आकारों में सारी दुनिया कैद हो जाती है। दीवार पर सूरज गोल दिखाई दे रहा था, घर और खिड़कियाँ चौकोर और छत त्रिकोण, एक पगडंडी जो दो लाईनों में सीमित थी, घर के चौकोर दरवाज़े से निकल कर कागज़ के कोने में लुप्त हो गई थी कहीं। आकाश में कुछ पंछी उड़ते हुए और बच्चे खेलते हुए नज़र आ रहे थे। बच्चों के हाथ-पैर भी चौकोर बने हुए थे और मुँह गोल। थोड़े रंगों में ही सारी दुनिया रंग दी थी, हरे, नीले, पीले, लाल रंगों से बने ये चित्र धूल, मिट्टी, गर्द को बड़ी खूबसूरती से अपने पीछे छिपा लिया था उन्होनें।

सामने ही स्ट्रिप माल है, जिसमें एक ग्रोसरी स्टोर है जहाँ खाने पीने का सब समान मिल जाता है, चौबीस घंटे खुला रहता है । यहाँ भारतीयों की सँख्या कुछ अधिक है इसीलिये यहाँ एक आईल है, जहाँ दाले और मसाले भी मिल जाते हैं। दस साल पहले ये सब मिलना मुश्किल था। उसके लिये कोई देसी स्टोर ढूँढना पड़ता था। आजकल मुंम्बई और दिल्ली जैसे शहर में भी ये स्टोर मिल जाते हैं। एक डालर स्टोर है जहाँ हर चीज़ एक डालर की मिलती है। जो आवश्यक नहीं पर फ़िर भी आवश्यक है,वो चीज़ें मिल जाती हैं जैसे प्लास्टिक के डिब्बे,प्लास्टिक की बाल्टी, मग, सुतली, अखबार की गड्डी बाँधने के लिए, जन्मदिन के लिए रैपिंग पेपर, गुब्बारे, छोटे-छोटे खिलौने जिनको देख कर भारत में खिलौने बेचने वाले की याद आ जाती है जॊ गली के नुक्कड़ तक पहुँचा भी नही होता है, कि पता चला कि चिड़िया जो अभी डंडी पर सन्तुलन बनाए बैठी थी, वो अब ज़मीन पर घायल पड़ी है और आप खाली डंडी को हिला रहे हैं। हालमार्क कार्ड्स की दुकान, ड्राईक्लीनर्स , इंडियन, चाइनीज़, इटेलियन रेस्तरां भी हैं और एक आईसक्रीम की दुकान भी है। ये यहाँ घर से थोड़ी दूर हर कोने में मिल जाते हैं, जैसे दिल्ली में ग्रेटर कैलाश मार्किट, सरोजनी नगर मार्किट, साऊथ एक्स की मार्किट हैं। दिल्ली में जब ये मार्किट बनी थी तब छोटी थी, धीरे-धीरे रेसिडेन्शल एरिया में भी पहूँच गई, यहाँ टाऊनशिप के कानून बहुत कड़े हैं, इसीलिए मार्किट उसी क्षेत्र तक सीमित रहती है। यहाँ अब नई दुकाने बन गई हैं और दीवार जिसपर बच्चों की चित्रकारी थी अब म्यूनिसिपल बिल्डिंग में सहेज के रखी है।

कुछ दिन पहले हम कहीं जा रहे थे और रास्ते में ऐसा ही एक स्ट्रिप माल आया था जिसका नाम Nelsons Corner था। नाम अच्छा लगा था सो ऐसे ही एक कविता बन पड़ी थी, वो यहाँ लिख रही हूँ।

NELSONS CORNER

Nelsons Corner is around the bend,
The bagel's shop on the left,
Walk few steps and starbucks is on the right,
Few chairs and table are outside,
People sitting outside are
Drinking coffee with the sun,
A woman ,
Sure and then unsure of the day ahead,
Sitting with a book rested in her hands,
One page drifts to another,
One dream drifts to another,
The morning is waking up now,
The coffee ,the day and the dream mingles,
One face change to another,
One cup of coffee to another,
Steps are passing by,
Another day,
Nelsons Corner is around the bend.

5 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत साधुवादी कार्य है. अच्छा लग रहा है इस तरह नई बातों का परिचय.

कविता बहुत सुन्दर बन पड़ी है, बधाई आपको.

Atul Chauhan said...

अच्छी रचना है। लेख पसन्द आया।

रजनी भार्गव said...

समीर जी और अतुल जी धन्यवाद सराहने के लिये.
कोशिश कर रही हूँ कि जो अमेरिका हम मीडिया के द्वारा जानते हैं, उससे भी भिन्न एक पहलू है. कहाँ तक सफ़ल हो पाऊँगी, ये देखती हूँ.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

रजनी भाभी, हाँ बिलकुल ऐसा ही अमरीका मैँने भी देखा है -- आप लिखतीँ रहेँ -- पढने मेँ आनँद आ रहा है -
स स्नेह, -- लावण्या

Batangad said...

'यहाँ भारतीयों की सँख्या कुछ अधिक है इसीलिये यहाँ एक आईल है, जहाँ दाले और मसाले भी मिल जाते हैं।'

यानी यहां पहुंचने पर दाल-चावल-रोटी-सब्जी मिल सकती है।