Sunday, September 21, 2008

एक अनूठा संसार

हमारे घर के पास एक लर्निंग सैन्टर है जहाँ मैं बच्चों को गणित और अंग्रेज़ी पढ़ाती हूँ। बच्चों की उम्र लगभग तीन से पाँच के करीब है। ये प्रोग्राम शाम को चार बजे शुरू होता है। स्कूल से आने के बाद बच्चे जब आते हैं तो कोई नींद से उठ कर आता है तो कोई कराटे की क्लास से लौटा होता है तो कोई पियानो सीखने के बाद आता है। कोई बच्चा थका हारा निढाल सा तो कोई बच्चा इतना हाईपर कि पूरे दिन स्कूल में क्या-क्या बीता, दो मिनट में एक लेखक के समान पूरे दिन की कहानी गढ़ देता है। किसी विषेश पात्र की आवश्यकता नही होती है, बात क्रमबद्ध हो ये भी ज़रूरी नहीं, बस कहना ज़रूरी है। सब कुछ महत्वपूर्ण होता है इसीलिये हर घटना को सूत्र में बाँधना मुश्किल होता है। कोई बदमाशी के मूड में होता है, किसी को इतनी नींद आ रही होती है कि वहीं डैस्क पर सर ढुलका जाता है। इन सब के मासूम चेहरे और हाव-भाव देखने लायक होते हैं, रोनी सूरत, बिखरे बाल, प्यारी सी मुस्कराहट, किसी की कोहनी छिली हुई, किसी की उंगली पर बैंडएड लगा हुआ है, तो कोई सज संवर कर और बाल बड़े तरतीब से बना कर आया है, पता लगा कि आज साहिब का जन्मदिन है। क्रिस की आज हंसी ही नही थमती है। जेसन ठोड़ी पर पैन्सिल टिकाए पेपर पर नज़रें जमाए बैठा है तो बैठा ही है। आदि को आज नया इरेज़र मिला है। अब हर शब्द बार-बार मिटाया जा रहा था और डैस्क का सरफ़ेस कागज़ के बीच में से नज़र आ रहा था। बार-बार बोल कर याद दिलाना पड़ा कि काम खत्म करो।


मैंने हँस कर हैलो की नहीं कि सारी गाथा सुना दी जाती है। लिज़ी के पिताजी काम के सिलसिले में बाहर बहुत रहते हैं, आज वापस आ रहे हैं, लिज़ी अपनी मम्मी और डैड के साथ पार्क जायेगी। अमर के घर में एक छोटा भाई आने वाला है, इसी कारण वो दो महीने के लिये नही आ पायेगा। अमित की दादी इंडिया से आने वाली हैं, वो उन्हे एयेर्पोर्ट लेने जाएगा। मुझे कुछ आता जाता है या नही, इसका बच्चों को भी पता होना चाहिये। एक दिन मुझसे ये प्रश्न पूछा गया कि कैथी की आँखें नीली क्यूँ है ? सरल सा जवाब होगा, माँ बाप की जींस की वजह से, पर मैं गलत थी। कैथी की आँखें नीली इसलिये थी क्योंकि वो ब्लूबैरी बहुत खाती है। राधिका जो वहीं पर बैठी थी वो भी अब ये बताने के लिये उत्सुक थी कि उसकी आँखें काली क्यों हैं। बहुत मासूमियत से बताया गया कि उसको ब्लैकबैरीज़ बहुत अच्छी लगती हैं इसीलिये उसकी आँखें काली हैं।


एलैक्स को गुस्सा ज़रा ज्यादा आता है और मुझे डाँटना भी उसकी अधिकार की सीमा के अंतर्गत ही आता है। मैंने अपना पढ़ाने का दिन बदल लिया था तो एलैक्स को बहुत दिनों से देखा नहीं था। बीच में एक दिन जाना पड़ा तो ऐलैक्स से सामना हुआ, देखते ही झुंझला कर बोले," Where were you for so many days?" जब बताया तो झुंझलाहट में ही बोले," I missed you." इसके आगे आप क्या कह सकते हैं। गर्मी में घास के साथ बहुत सारे डैंडलाईन उग आते हैं, एक किस्म की वीड (मोथा) जिसमें पीले फूल निकलते हैं। केटी इन पीले फूलों के साथ दो तीन जंगली पत्तियाँ ला कर हाथ में देती है और कहती है ये सब मेरे लिये है। वो फूल उसके जाने से पहले मुरझा जाते हैं पर मैं सब बटॊर कर घर ले आती हूँ। जब स्कूल में थी तो हमारी बायोलोजी की टीचर मेरी पसंदीदा टीचर हुआ करती थीं पर मैं कभी भी हिम्मत नहीं जुटा पाई फूल पत्ती देने की। आज जब ये सब बच्चे करते हैं तो बहुत अच्छा लगता है।

9 comments:

Pratyaksha said...

हम भी आ सकते हैं आपके लर्निंग सेंटर में ? :-)
क्लास में खींच कर ले गईं आप । बच्चों के बारे में और कुछ बताईये ..

रंजन (Ranjan) said...

बहुत प्यारा लर्निग से्न्टर है..:)

परमजीत सिहँ बाली said...

खिलते हुए और महकते हुए फूलों की कहानी-सी लगती है। बहुत बढिया लगा आप का ल्र्निग सैंटर।

रंजू भाटिया said...

मजेदार है यह आपका लर्निंग सेंटर अच्छा लगा यहाँ आ कर

संगीता पुरी said...

आपके बच्चों के बारे में और जानने की इच्छा है। लिखते चलिए।

डॉ .अनुराग said...

आहा .....जलन हो रही है आपसे ....नन्हे फरिश्तो के बीच....कुछ फोटो भी बांटिये ...आपकी क्लास में नाम लिखाने के लिए क्या करना पड़ेगा ?

Udan Tashtari said...

बहुत अच्छा लगा आपके लर्निंग सेन्टर और बच्चों के बारे मेँ पढ़कर.

रजनी भार्गव said...

अनुराग जी बच्चों की privacy के मामले में यहाँ सब लोग बहुत स्ट्रिक्ट हैं। माँ बाप की इजाज़त के बिना कोई तस्वीर नहीं छाप सकती। सेन्टर की भी परमिशन चाहिये। आगे कुछ कर सकी तो ज़रूर करूँगी।

Tarun said...

हम तो पक्का आ सकते हैं आपके लर्निंग सेन्टर में क्योंकि ये ज्यादा दूर नही, बच्चे होते ही ऐसे हैं।